5 Essential Elements For Shodashi

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चत्वारिंशत्त्रिकोणे चतुरधिकसमे चक्रराजे लसन्तीं

The graphic was carved from Kasti stone, a rare reddish-black finely grained stone accustomed to fashion sacred illustrations or photos. It was introduced from Chittagong in current day Bangladesh.

Her representation will not be static but evolves with inventive and cultural influences, reflecting the dynamic mother nature of divine expression.

Shiva utilized the ashes, and adjacent mud to once again form Kama. Then, with their yogic powers, they breathed existence into Kama in this type of way that he was animated and really effective at sadhana. As Kama ongoing his sadhana, he steadily attained electricity over Other people. Entirely mindful in the prospective for complications, Shiva performed together. When Shiva was questioned by Kama for a boon to get 50 percent of the power of his adversaries, Shiva granted it.

Shiva following the Dying of Sati had entered right into a deep meditation. Without the need of his Electrical power no development was possible and this brought about an imbalance within the universe. To convey him from his deep meditation, Sati took beginning as Parvati.

लक्ष्मीशादि-पदैर्युतेन महता मञ्चेन संशोभितं

कैलाश पर्वत पर नाना रत्नों से शोभित कल्पवृक्ष के नीचे पुष्पों से शोभित, मुनि, गन्धर्व इत्यादि से सेवित, मणियों से मण्डित के मध्य सुखासन में बैठे जगदगुरु भगवान शिव जो चन्द्रमा के अर्ध भाग को शेखर के रूप में धारण किये, हाथ में त्रिशूल और डमरू लिये वृषभ वाहन, जटाधारी, कण्ठ में वासुकी नाथ को लपेटे हुए, शरीर में विभूति लगाये हुए देव नीलकण्ठ त्रिलोचन गजचर्म पहने हुए, शुद्ध स्फटिक के समान, हजारों सूर्यों के समान, गिरजा के अर्द्धांग भूषण, संसार के कारण विश्वरूपी शिव को अपने पूर्ण भक्ति भाव से साष्टांग प्रणाम करते हुए उनके पुत्र मयूर वाहन कार्तिकेय ने पूछा —

संरक्षार्थमुपागताऽभिरसकृन्नित्याभिधाभिर्मुदा ।

या देवी दृष्टिपातैः पुनरपि मदनं जीवयामास सद्यः

Sati was reborn as Parvati towards the mountain king Himavat and his wife. There was a rival of gods named Tarakasura who can be slain only by the son Shiva and Parvati.

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥७॥

ह्रीं ह्रीं ह्रीमित्यजस्रं हृदयसरसिजे भावयेऽहं भवानीम् ॥११॥

कर्तुं here देवि ! जगद्-विलास-विधिना सृष्टेन ते मायया

यह साधना करने वाला व्यक्ति स्वयं कामदेव के समान हो जाता है और वह साधारण व्यक्ति न रहकर लक्ष्मीवान्, पुत्रवान व स्त्रीप्रिय होता है। उसे वशीकरण की विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसके अंदर एक विशेष आत्मशक्ति का विकास होता है और उसके जीवन के पाप शान्त होते है। जिस प्रकार अग्नि में कपूर तत्काल भस्म हो जाता है, उसी प्रकार महात्रिपुर सुन्दरी की साधना करने से व्यक्ति के पापों का क्षय हो जाता है, वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और उसे समस्त शक्तियों के स्वामी की स्थिति प्राप्त होती है और व्यक्ति इस जीवन में ही मनुष्यत्व से देवत्व की ओर परिवर्तित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर लेता है।

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